Monday, December 8, 2008

सकारात्मक चिंतन का उपयोग करें दूसरों के दु:ख बांटने में - श्री नरसिम्हन

प्रजापिता ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन -- रायपुर, 07 दिसम्बर 2008 -- छत्तीसगढ़ के राज्यपाल श्री ई.एस.एल. नरसिम्हन ने कहा कि सकारात्मक चिंतन से सकारात्मक वातावरण का निर्माण होता है जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। निराशावादी एवं नकारात्मक विचारों से दूर रहते हुए हमें अपनी सकारात्मक शक्ति का उपयोग दूसरों की मदद और दुख बांटने के लिए करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दूसरों की तकलीफों और समस्याओं को सुनकर भी कई बार हम उनकी मदद करते हैं और अपनी सकारात्मक ऊर्जा उन्हें दे सकते हैं। उक्त विचार श्री नरसिम्हन ने आज रायपुर में प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय तथा वैज्ञानिक अभियंता प्रभाग द्वारा 'सकारात्मक और रचनात्मक जीवन' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में व्यक्त किए।

श्री नरसिम्हन ने कहा कि भारतीय संस्कृति में दोनों हाथ जोड़कर किए गए प्रणाम से हमें विभिन्न अवयवों में एकात्मकता का बोध होता है जिसे हमें पाश्चात्य संस्कृति का अनुगमन करने के कारण भूलते जा रहे हैं। वहीं साष्टांग चरण स्पर्श कर प्रणाम करने से आदर एवं एकात्म भाव का बोध उत्पन्न होता है जबकि पाश्चात्य संस्कृति में औपचारिकता का। उन्होंने कहा कि नकारात्मक विचार योग्यता की कमी का परिचायक है। मनुष्य को अपने मस्तिष्क में निहित 'अहं' की भावना का परित्याग कर स्वयं को परमपिता ईश्वर में समर्पित कर देना चाहिए। परिस्थितियां हमारे वश में नहीं होती हैं, परमपिता ईश्वर ही सभी बातों को नियंत्रित करते हैं। प्रसिध्द कर्नाटक संत एवं संगीतज्ञ त्यागराज के उध्दरण को याद करते हुए उन्होंने कहा कि धन से अधिक सुख की प्राप्ति ईश्वर की सेवा में है और ईश्वर की सेवा ही मानवता की सेवा है। उन्होंने कहा कि राजयोग परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग है जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। उन्होंने आशा व्यक्त किया कि सकारात्मक विचारों से देश में सभी के जीवन में खुशिया एवं आनंद हो।

श्री नरसिम्हन ने कहा कि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए स्टॉक होम में कई निर्णय लिए गए हैं। यदि हम प्राचीन भारतीय वैदिक सभ्यता का अध्ययन करें तो पर्यावरण सुरक्षा का विचार नया नहीं है। हमारे प्राचीन वेद एवं ग्रंथों के अनुसार पशुओं, जीव एवं जंतुओं को देवता तुल्य मानकर पूजा की जाती थी और उन्हें हानि नहीं पहुंचाया जाता था। उन्होंने अपने नाम नरसिम्हन का उदाहरण देते हुए बताया कि भगवान विष्णु ने नरसिंह का रूप लिया वैसे ही सभी जीव-जंतु जैसे शेर को शक्ति का प्रतीक, मोर को कार्तिकेय, मूषक को गणेश, गरूड़ को भगवान विष्णु के वाहक के रूप में देवता के समान पूजा की गई है। वहीं गुणों से युक्त पीपल के वृक्ष एवं तुलसी के पौधे की भी पूजा की जाती थी, उन्हें काटा नहीं जाता था। शुध्द नदी को देवता मानकर लोग स्नान करते थे लेकिन आज हम अपने मूल्यों एवं विश्वासों को भूलते जा रहे हैं और इसे याद करने के लिए हमें स्टॉक होम जाना पड़ता है।

श्री नरसिम्हन ने कहा कि एक ऐसा भी दौर गुजरा है जब आध्यात्म और विज्ञान को परस्पर विरोधी रूप में देखा जाता था और जिसमें संघर्ष के स्वर मुखर होते थे। लेकिन आज दुनिया ने दोनों की सार्थकता और समन्वय के महत्व को समझा है। मानवता के हित के लिए विज्ञान एवं आध्यात्म का समन्वय बहुत जरूरी है। भौतिकवादी सुखों के पीछे बेतहाशा भागना जीवन में संतुष्टि नहीं लाता, बल्कि मानसिक अस्थिरता, तनाव और रोष उत्पन्न करता है। इस दौड़ में जीवन के वास्तविक लक्ष्यों को भूलना आज के समय की एक बड़ी समस्या है। मन की शांति और खुशियां अनमोल है, इन्हें खरीदा नहीं जा सकता। कई बार जहां अत्यधिक धन एवं संपत्ति होने के बावजूद लोगों को मन की शांति प्राप्त नहीं होती। वहीं दूसरी ओर सुविधाहीन एवं गरीब व्यक्ति के मन में शांति हो तो वह खुश रह सकता है।

श्री नरसिम्हन ने कहा है कि हमने अपनी जरूरतों के लिए प्रकृति का अविवेकपूर्वक दोहन किया है। इस कारण आज पूरी पृथ्वी पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। बात चाहे ओजोन छतरी के कमजोर होने की हो या ग्रीन हाउस प्रभाव, ग्लोबल वार्मिंग, पृथ्वी का तापमान बढ़ने, ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने तथा अम्लीय वर्षा होने जैसी घटना के होने की। पृथ्वी पर इतने अधिक संकट कभी नहीं रहे। इस संकट का जिम्मेदार मनुष्य स्वयं है। प्रकृति मेें मानवीय जरूरतों को पूरा करने की तो क्षमता है लेकिन वह मनुष्य के लोभ को पूरा नहीं कर सकती। पृथ्वी और प्रकृति को बचाने के लिए यह जरूरी है नेचर (प्राकृतिक तत्वों) पर लालचपूर्ण नियंत्रण करने के स्थान पर मनुष्य अपने नेचर (स्वभाव) पर नियंत्रण करे।

जोनल डायरेक्टर इंदौर श्री ओमप्रकाशजी भाई ने कहा कि विज्ञान एवं टेक्नॉलाजी ने मनुष्य को सुविधाएं एवं साधन प्रदान किए लेकिन इसके साथ ही समाज में चिंता, तनाव एवं निराशा बढ़ने लगी। उन्होंने कहा कि ये परिस्थितियां विज्ञान एवं टेक्नॉलाजी में नहीं बल्कि मानव ने स्वयं निर्मित की है। आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य अपने विचारों में बदलाव लाए और निराशावादी विचारों के स्थान पर सकारात्मक विचारों को महत्व दें। उन्होंने पर्यावरण प्रदूषण तथा इसके नकारात्मक परिणामों की भी चर्चा की। राष्ट्रीय समन्वयक वैज्ञानिक एवं अभियंता प्रभाग श्री बी. के. मोहन सिंघल ने कहा कि जीवन के सभी पहलुओं में आध्यात्मिकता एवं मूल्यों का समावेश होना चाहिए तथा राजयोग के माध्यम से समस्याओं का समाधान प्राप्त करना चाहिए। संस्था की जोनल इंचार्ज छत्तीसगढ़ कमला बहन जी ने कहा कि विश्व में व्याप्त तमाम दुख, भय, निराशा जैसी चुनौतियों का सामना आध्यात्मिकता से ही किया जा सकता है। कार्यकारी संचालक वित्ता भिलाई स्टील प्लांट श्री टी.के. गुप्ता ने कहा कि आनंद को देवताओं ने हृदय में स्थान दिया है, इसलिए आनंद का घर हृदय में ही है। हर सफलता के लिए हृदय तक पहुंचने की कला आनी चाहिए। इस अवसर पर पानीपत के प्रबंधक टे्रनर श्री बी.के. भारतभूषण ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सभी को शपथ दिलाई।

इस अवसर पर 'पृथ्वी ग्रह को बचाओं' स्टेप परियोजना का शुभांरभ राज्यपाल ने किया। इस परियोजना का उद्देश्य जन साधारण को पर्यावरण की दिशा में प्रेरित करना है। श्री नरसिम्हन ने इस परियोजना को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया। राज्यपाल ने पर्यावरण संरक्षण पर आधारित 'पृथ्वी ग्रह को बचाओ' प्रर्दशनी का भी शुभारंभ किया। इस मौके पर धमतरी की नवनीता बहन ने गीत गाया एवं कार्यक्रम का संचालन ब्रम्हकुमारी माधुरी बहन ने किया।

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